आज सुबह ही दलगजन काका का माथा ठनक गया था। पेपर पढ़ते ही माथा पकड़ लिये। सामने बैठे किसी से कोई बातचीत नहीं। मैं समझ गया कि आज कुछ गड़बड़ खबर छपी है। मैं तो इसी के इंतजार में रहता ही हूं। सो मौका ताड़ते ही पूछ बैठा, क्या हुआ काका जी। चाय ठंडी हो रही है, क्यों नहीं पी रहे हैं।

उनकी इन बातों में मुझे कोई भी मजा नहीं आया। मुझे राजनीति से क्या लेना देना। मैं तो यह जानना चाहता था कि उछल कुद में कमी का क्या मतलब है। मैने साहस करके पूछ ही दिया। तब काका ने कहना शुरू किया-
एक बाद जंगल के जानवरों ने राजा से परेशान होकर फिर से राजा के चुनाव कराने का निर्णय लिया। जंगल के सभी जानवर इकट्ठा होकर राजा के चुनाव के लिए चर्चा करने लगे। पहले के राजा शेर से परेशान होकर ज्यादातर जानवरों ने बंदर को अपना राजा चुन लिया। सभी ने सर्वसम्मति से बंदर को राजा बना दिया। उसके बाद सभा स्थगित कर दी गई।
बहुत दिनों तक जंगल में सब ठीक-ठाक चलता रहा। एक दिन शेर ने एक लोमड़ी के बच्चे को उठाकर लेकर चला गया। इससे परेशान होकर लोमड़ी जंगल के राजा के पास पहुंची और गुहार लगाते हुए बोली कि, मेरे बच्चे को बचा लो। नहीं तो शेर खा जाएगा। उसकी बातों को सुनकर राजा बना बंदर तुरंत उसके साथ चल दिया। शेर के गुफा के पास जाकर लोमड़ी छुप गई और बंदर पेड़ पर चढ़कर उछल कूद करने लगा। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि गुफा में जाकर शेर से लोमड़ी के बच्चे को छुड़ा लाए। काफी देर तक वह उछल कूद करता रहा। बंदर हरकतों को देखकर जब लोमड़ी को नहीं रहा गया तो उसने बंदर के पास आकर बोली, यह क्या कर रहे हैं। मेरे बच्चे को क्यों नहीं ला रहे हैं। तब बंदर बोला, तुम्हारा बच्चा नहीं छुट पा रहा है तो क्या हुआ, मेरे उछल कूद में तो कोई कमी नहीं है।
वहीं हाल इस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति का है। मुख्यमंत्री उछल कूद तो कर रहे हैं। उनका क्या दोष है। जो होगा उससे उनपर क्या फर्क पड़ेगा, भोगना तो समाज को ही है।