क्यों उजाड़ रहे हो मेरी हंसती-खेलती बगिया

आज रास्ते में भ्रष्टाचार मिल गया ............ लगा गरियाने देखते ही ......... बोला की हंसती -खेलती बगिया उजाड़ रहे हो ,अच्छी बात नहीं है .... मेरी खाती- कमाती जिन्दगी में आग नहीं लगने वाली ...मै इतनी जल्दी मरने वाला भी नहीं ..... हार नहीं मानुगा ..मेरे चाहने वाले सरकार के अन्दर भी और बाहर भी ..तुम्हारे जुलूस में भी और अनशन में भी ढेर सारे निकल आयेगे ... बोला-- मै जनता हू की तुम मुझसे नफरत करते हो ..मेरी तरक्की से तुम्हे जलन होती है ...बेवकूफ अपने अन्दर झांक .देख मै अन्दर ही बैठा हू ........अबे जब तेरी गरज होती है मेरे रास्ते ही चलते हो ....और आज तुम मेरे प्रशस्त पथ पर अवरोध डालने निकले हो .. मुझे मिटाने निकले हो ..पहले पैदा किया और पाल कर सेहतमंद बना दिया ...अब जब मेरी आदत पड़ चुकी है मेरी घेराबंदी कर रहे हो ... मै तुम्हे चुनौती देता हू ... तुम मुझे गाड़ने के लिए कितना भी बड़ा बिल बनवा लो ... मैंने व्यवस्था की जमीन में जो बिल बना रखे है ...तुम उसकी गहराई में सात जन्मो तक नहीं पहुच पाओगे .. मेरे बनाये बिल में प्रवेश करोगे तो वहा सुरंगों में भी सुरंगे है तुम भटक जाओगे तुम्हारी मशाले बुझ जायेगी ..लेकर चलते हो कैंडिल ..जायो अनशन करों भूखे मरो ...मुझे खाना है लगातार खा खा कर मुस्टंडा होकर एक दिन सबको खा जाउगा .................