महाप्रलय के स्वागत की तैयारी !

आज साल का अंतिम दिन। लोग इस साल की विदाई और आने वाले नव वर्ष की तैयारी में व्यस्त हैं। हम उस अनिश्चितता और भयावहता के स्वागत के लिए खड़े हैं, जिसके बारे में हमें ठीक से जानकारी तक नहीं है। आज के समय में हमारे वैज्ञानिकों ने भविष्य की संभावनाओं के बारे में काफी कुछ जानकारी जुटा लिया है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि आने वाला वर्ष हमारे वजूद के लिए काफी खतरनाक है। उनका तो यहां तक दावा है कि यह वर्ष मानव जीवन के लिए अंतिम वर्ष है। महाप्रलय की घोषणा काफी पहले ही कर दी गई है। पर यह क्या विडंबना है कि महाप्रलय के स्वागत के लिए इतने उतावले हो रहे हैं।

क्यों उजाड़ रहे हो मेरी हंसती-खेलती बगिया

आज रास्ते में भ्रष्टाचार मिल गया ............ लगा गरियाने देखते ही ......... बोला की हंसती -खेलती बगिया उजाड़ रहे हो ,अच्छी बात नहीं है .... मेरी खाती- कमाती जिन्दगी में आग नहीं लगने वाली ...मै इतनी जल्दी मरने वाला भी नहीं ..... हार नहीं मानुगा ..मेरे चाहने वाले सरकार के अन्दर भी और बाहर भी ..तुम्हारे जुलूस में भी और अनशन में भी ढेर सारे निकल आयेगे ... बोला-- मै जनता हू की तुम मुझसे नफरत करते हो ..मेरी तरक्की से तुम्हे जलन होती है ...बेवकूफ अपने अन्दर झांक .देख मै अन्दर ही बैठा हू ........अबे जब तेरी गरज होती है मेरे रास्ते ही चलते हो ....और आज तुम मेरे प्रशस्त पथ पर अवरोध डालने निकले हो .. मुझे मिटाने निकले हो ..पहले पैदा किया और पाल कर सेहतमंद बना दिया ...अब जब मेरी आदत पड़ चुकी है मेरी घेराबंदी कर रहे हो ... मै तुम्हे चुनौती देता हू ... तुम मुझे गाड़ने के लिए कितना भी बड़ा बिल बनवा लो ... मैंने व्यवस्था की जमीन में जो बिल बना रखे है ...तुम उसकी गहराई में सात जन्मो तक नहीं पहुच पाओगे .. मेरे बनाये बिल में प्रवेश करोगे तो वहा सुरंगों में भी सुरंगे है तुम भटक जाओगे तुम्हारी मशाले बुझ जायेगी ..लेकर चलते हो कैंडिल ..जायो अनशन करों भूखे मरो ...मुझे खाना है लगातार खा खा कर मुस्टंडा होकर एक दिन सबको खा जाउगा .................

पहले फांसी पर लटकाओ, सब ठीक हो जाएगा

दिल्ली विस्फोट में शामिल आतंकियों को पकडऩे के लिए हमारे देश की खुफियां एजेंसियां एड़ी चोटी एक किए हुए हैं। लेकिन इससे क्या होने वाला है। अगर आतंकी पकड़ भी लिए जाते हैं तो क्या हो जाएगा। हमारे लिए एक और सिरदर्द। पहले के आतंकियों को पकड़कर तो हम अपने पैर में कुल्हाड़ी मार ही चुके हैं। मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट में शामिल कसाब को लेकर तो हमारे देश के नेताओं को पसीना आ ही रहा है। उस आतंकी की रक्षा में हमारे देश की सबसे पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को लगाया गया है। उसको खाने में क्या चीज देनी है, उसके लिए बकायदा बोर्ड गठित है। उसको कब किस चीज की जरूरत है, इसके लिए एक पूरा सेल काम करता है। इसी को देखते हुए हमारे आकाओं ने संसद पर हमला करने वाले हेडली को अपने देश में लाने की जोखिम ही नहीं उठाया। उसे अमेरिका में ही रहने दिया। एक तरह से ठीक ही किया। अगर वह भी आ जाता तो हमारे सुरक्षा एजेंसियों के एक और सिरदर्द हो जाता। विकिलिक्स के इस खुलासे के बाद कि हमारे देश के नेताओं ने हेडली को भारत लाने का प्रयत्न ही नहीं किया, नेताओं पर क्या फर्क पडऩे वाला है।
हमारे देश के प्रिय नेताओं हम यही चाहते है कि केवल जंाच करने और पकड़ लेने से कुछ नहीं होने वाला। पहले पकड़े हुए आतंकियों को फंसी पर तो लटकाओं, देखो अपने आप सब ठीक हो जाएगा।

तो क्या फिर अपने अभियान में सफल होगी 'गांधी टोपी

अन्ना हजारे के समर्थन में पूरे देश से हजारों के बाद अब लाखों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा है। इन सभी को एक सूत्र में बांधने का काम रही है गांधी टोपी। गांधी टोपी पहनने का मतलब है, अन्ना हजारे का समर्थन करना।
क्या आप जानते हैं गांधी टोपी की शुरुआत कब हुई थी। १९१९ में जब महात्मा गांधी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे। उस समय उनके सिर पर हमेशा पांच गज कपड़े की पगड़ी हुआ करती थी। उसी दौरान जब वे भारत भ्रमण पर निकले तो देखा कि देश के कई हिस्सों में गरीबी का आलम यह है कि लोगों के पास तन ढकने के लिए कपड़े तक नहीं है। खाने के लिए भोजन नहीं है। उन्होंने यह तय किया कि कपड़े का बचत किया जाए। उन्होंने उसी समय पगड़ी को त्याग कर एक कम कपड़ोंं में तैयार टोपी से अपना सिर ढकना शुरू किया। यही वह टोपी है जिसे महात्मा गांधी जी ने १९१९ में अपने सिर पर धारण किया था।
उनके टोपी पहनने का परिणाम यह हुआ कि उस समय जो लोग भी उनके समर्थन में आए, वही खादी की टोपी पहनते गए। अंग्रेजों को यह टोपी काफी खटकने लगी। टोपी पहनने का मतलब ही होता था कि आजादी की लड़ाई में हम शरीक है। गांधी टोपी ने अंगेजों की नाक में दम कर दिया और आजादी की लड़ाई में इस टोपी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज जो आजादी हमें मिली है, उसमें गांधी टोपी का खास योगदान रहा है। इसी टोपी ने हमें अंगे्रजों से आजादी दिलाई थी। इसी का परिणाम है कि हमारे देश में हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार है।
लेकिन १६ अगस्त २०११ से अब यही गांधी टोपी अपने मायने को बदल चुकी है। अब यही गांधी टोपी सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि सरकार को अपनी बात मनवाने के लिए अड़ गई है। तो क्या इस बार भी गांधी टोपी अपने अभियान में सफल होगी। जिस टोपी को पहनकर लोगों ने आजादी की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों जैसे दमनकारियों को भारत छोड़ कर भागने पर विवश कर दिया। आज उसी टोपी को पहनकर हम भारतीय अपने ही द्वारा चुनी गई सरकार को सबक सिखाने को आतुर है। अब देखना यह है कि क्या यह गांधी टोपी फिर अपने अभियान में सफल होगी। या फिर हमारे द्वारा ही चुनी गई सरकार अंगे्रजों से भी अधिक दमनकारी हो जाएगी। यह तो आने वाला कल ही बताएगा।

दलगजन काका जइहे जेल

दलगजन काका जब से टीवी पर अन्ना हजारे के भाषण सुनले बहुते परेशान हो गइले। अन्ना हजारे क बात सुनी के कि अब आजादी क दूसरी लड़ाई शुरू हो गइल बा। उन कर मन जल्दी से जेल जाए खातिर बड़ा उतावला हो गइल बा। एह बारी उ आइल मौका हाथ से गवावल नइखन चाहत। बात बहुत पुरान बा।
दलगजन काका आ नाथू काका दुई भाई हवन जा। आज के समय में नाथू काका के बुढवती बड़ी आराम से कटत बा। बगल में दलगजन काका के सूर्ती महंग हो गइल बा। बात अइसन बा कि जब आजादी के लड़ाई लागल रहे, वही समय अंग्रेजन के सैनिक उ गांव में आ धमकलन। लोगन के धर पकड़ शुरू हो गइल। लोग गांव छोड़ी के भागे लगलन। इ दुनो भाई भी घर से निकल के भागे लगलन। एही बीच में नाथू काका के पुलिस पकड़ लिहलस। नाथू काका जेल पहुंच गइलन। दलगजन काका सिर पर पैर रखिके भाग गइलन। आज उहे बात सोची के दलगजन काका के माथा सुलुग जात बा। नाथू काका के आज सरकार के ओर से सम्मानित कइला के साथ ही महिनवारी भी मिलत बा। लोग उनके स्वतंत्रता सेनानी कहत बा। उनके मिले खातिर बड़े-बड़े नेता लोग भी गांव में आवत रहेला। अब जब से टीवी पर दलगजन काका सुन ले कि आजादी क दूसरी लड़ाई शुरू हो गइल बा। जेल जाये खातिर उ धोती कुर्ता लेइके उ तैयार बाडऩ।

अन्ना में दम, अन्नागिरी में कितना दम ?

अन्ना की अन्नागिरी में कितना दम है। यह तो पूरे देश ने देख लिया। आज अन्ना के साथ पूरा देश एक पैर पर खड़ा है। उनके इशारों की आहट पाकर क्या बच्चे, क्या नौजवान सभी पूरे जोशो खरोश के साथ उनके समर्थन में जुटे हैं। अन्ना ने अपने अनशन के बल पर सरकार को भी झुका दिया। सरकार भी उनके आगे नतमस्तक होकर अन्ना की सभी शर्तों को मानने को विवश हो गई। अगर अनशन को लोग इसी तरह समर्थन देते रहे तो तो वह दिन भी दूर नहीं जब सरकार जनलोकपाल बिल को भी मानने को विवश हो जाएगी।
लेकिन क्या जनलोकपाल के आ जाने से देश से भ्रष्टाचार मिट जाएगा। यह एक यक्ष प्रश्र है। आज के समय में हमारे देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए अनेकों तंत्र बनाए गए हंै। केंद्र से लेकर राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अनेकों कानून हैं। लेकिन उसके बाद भी भ्रष्टाचार कम होने की बजाय और बढ़ता जा रहा है। इसको देखते हुए कैसे मान लिया जाए कि जिस कानून को लेकर देश में इस तरह का माहौल बनाया गया है, उसके आने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा। हमारे कानून में न्यायपालिका को सर्वोच्च माना गया है। वहां पर जाकर हर किसी को न्याय मिलने की उम्मीद रहती है। लेकिन आज उस पर भी अंगुली उठने लगी है। जजों के खिलाफ महाभियोग लगाने तक की नौबत आ पड़ी है। तो कैसे मान लिया जाए कि जनलोकपाल कमेटी के लोग भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं रहेंगे।

तिहाड़ बना अन्ना कंट्रोल रूम

अन्ना ने तिहाड़ को अपना आफिस बना लिया है। जिस जेल का नाम सुनकर ही अपराधियों की सांसें थमने लगती है। उसी जेल को अन्ना ने मीटिंग हाल बना दिया है। जिस जेल में पुलिस ने अन्ना को बंद कर अनशन को दबाना चाहा, आज वही जेल अन्ना के अनशन को और बढावा देने का गवाह बन रहा है। अन्ना की रिहाई के आदेश मंगलवार रात्रि को ही आ गए थे। लेकिन अन्ना ने जेल से बाहर जाने से इनकार कर दिया। पुलिस ने विवश होकर वहीं पर उनको आराम करने के लिए कमरे का व्यवस्था किया। सरकार के जो मंत्री कल तक नियमों को हवाला देकर अनशन के लिए जगह देने से कतरा रहे थे, वहीं आज अन्ना अपने मर्जी से जेल में ही अनशन कर रहे हैं। और कोई भी उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहा है। यहीं नहीं बुधवार दोपहर को तो अन्ना ने तिहाड़ जेल को ही अपना मीटिंग हाल भी बना दिया। अन्ना ने अपने साथियों को जेल के अंदर बुलाकर मीटिंग शुरू कर दी। यह सब सरकार की नजर में हो रहा हैे। लेकिन अब सरकार या उसके कोई भी मंत्री नियमों की दुहाई नहीं दे रहे हैं। अन्ना के आगे सरकार पूरी तरह झुक गई है। अब गेंद पूरी तरह अन्ना के पाले में है। जो सरकार अन्ना की टीम को अनशन के खातिर जगह तय करने के लिए पिछले एक महीने से आफिस का चक्कर लगवा रही थी और १५ अगस्त तक यह मामला सुलझ नहीं पाया। वहीं सरकार आज अन्ना के लिए समूचे आफिसों को लिए तिहाड़ पहुंच गई है। जो फैसले लेने में पूरे एक महीने लग गए वहीं फैसला आज तिहाड़ में बैठी अन्ना टीम को आज घंटों में मिल रहा है। अन्ना के आगे सरकार पूरी तरह बेबस नजर आ रही हैे। चाहे जन लोकपाल का कुछ भी, भ्रष्टाचार मिटे या न मिटे, लेकिन यह तो तय हो गया कि अन्ना ने सरकार की पूरी तरह से किरकिरी कर दी। जनता के सामने सरकार अब मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही।

असली अपराधी कौन


एक दिन राजा कृष्णदेव राय अपने दरबारियों के साथ दरबार में बैठे थे। अचानक एक चरवाहा वहां आया और बोला, 'महाराज, मेरी मदद कीजिए। 'बताओ, तुम्हारी क्या समस्या है?Ó राजा ने पूछा। 'महाराज, मेरे पड़ोस में एक कंजूस रहता है। उसका घर बहुत पुराना हो गया है, परन्तु वह उसकी मरम्मत नहीं करवाता। कल उसके घर की एक दीवार गिर गई और उसके नीचे मेरी बकरी दबकर मर गई। कृपया पड़ोसी से मुझे हर्जाना दिलवाइए।Ó महाराज के कुछ कहने से पहले ही तेनाली राम उठा और बोला, 'महाराज, मेरे विचार से दीवार टूटने के लिए केवल इसके पड़ोसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।Ó 'तो फिर दोषी कौन है?Ó राजा ने पूछा। 'महाराज, यदि आप मुझे अभी थोड़ा समय दें, तो मैं असली अपराधी को आपके सामने प्रस्तुत कर दूंगा।Ó तेनाली राम ने कहा। राजा ने तेनाली राम का अनुरोध स्वीकार कर लिया। तेनाली राम ने चरवाहे के पड़ोसी को बुलाया और उसे बकरी का हर्जाना देने के लिए कहा। पड़ोसी बोला, 'महोदय, इसके लिए मैं नहीं वह मिस्त्री दोषी है जिसने वह दीवार बनाई। उसने इसे मजबूती से नहीं बनाया। अत: वह गिर गई।Ó तेनाली राम ने मिस्त्री को बुलवाया। मिस्त्री ने कहा,'अन्नदाता, मुझे व्यर्थ ही दोषी माना जा रहा है जबकि असली दोष तो उन मजदूरों का है, जिन्होंने गारे में अधिक पानी मिलाकर मिश्रण को खराब बनाया, जिससे ईंटें अच्छी तरह से चिपक नहीं सकीं और दीवार गिर गई।Ó राजा ने मजदूरों को बुलाने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। राजा के सामने आते ही मजदूर बोले,'महाराज, इसके लिए दोषी तो वह व्यक्ति है, जिसने गारे चूने में अधिक पानी मिलाया।Ó गारे में पानी मिलाने वाला व्यक्ति भी अपराध सुनते ही बोला,'इसमें मेरा कोई दोष नहीं है महाराज, वह बर्तन जिसमें पानी भरा हुआ था, वह बहुत बड़ा था। इस कारण उसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया। अत: पानी मिलाते वक्त मिश्रण में पानी की मात्रा अधिक हो गई। मेरे विचार से आपको उस व्यक्ति को पकडऩा चाहिए, जिसने पानी भरने के लिए मुझे इतना बड़ा बर्तन दिया। तेनाली राम के पूछने पर कि वह बड़ा बर्तन उसे कहां से मिला तो उसने बताया कि वह बर्तन उसे चरवाहे ने दिया था, जिसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया था।Ó तेनाली राम ने फिर चरवाहे से कहा,'देखो, यह सब तुम्हारा ही दोष है। तुम्हारी एक गलती ने तुम्हारी ही बकरी की जान ले ली।Óचरवाहा लज्जित होकर दरबार से चला गया।