तो फिर फाइनल जीतेगी मुंबई इंडियंस

मुंबई इंडियंस टीम के इस सत्र में फाइनल जीतने के संयाेेेगबनने लगे हैंं। इससे पहले भी मुुंबई इंडियंस की टीम शुरुआती मैच हारने के बाद फाइनल मुकाबले को जीत चुकी है। इस सत्र में भी टीम अपने पहले दो मुकाबले हार चुकी है। शनिवार को उसका तीसरा मैच दिल्‍ली के साथ होना है। इससे पहले दिल्‍ली की टीम भी अपने दोनोंं मुकाबले गवां चुकी है। दोनों टीमों के लिए  इस सत्र में पहला मुकाबला जीतनेे की चुनौती होगी।
पिछले सभी आईपीएल मुकाबलों में भी मुंबई की टीम पहले हारकर ही वापसी की है। सत्र के आखिरी मैचों में जीतकर चैंपियन बनना मुंबई की आदत बन चुकी है। इस बार भी कप्‍तान रोहित शर्मा ही टीम की अगुवाई कर रहे हैं। संयोग देखकर तो यहीं लग रहा है कि इस बार  भी यहीं टीम चैपियन बनेगी। आज का मैच दोनों ही टीमें गंवाना नहीं चाहेगी। अभी तक दोनों ही टीमोंं के अंक तालिका में 0 अंक हैं। अब देखना होगा  कि पहले खाता कौन खोलता है।

उछल कूद में कोई कमी तो नहीं है


आज सुबह ही दलगजन काका का माथा ठनक गया था। पेपर पढ़ते ही माथा पकड़ लिये। सामने बैठे किसी से कोई बातचीत नहीं। मैं समझ गया कि आज कुछ गड़बड़ खबर छपी है। मैं तो इसी के इंतजार में रहता ही हूं। सो मौका ताड़ते ही पूछ बैठा, क्या हुआ काका जी। चाय ठंडी हो रही है, क्यों नहीं पी रहे हैं। 
पहली बार तो उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। बाद में उन्होंने झुझलाकर कहा उत्तर प्रदेश की राजनीति का तो वहीं हाल हो गया है कि उछल कूद में तो कोई कमी नहीं है, बाकी काम नहीं हो पाए तो मेरी क्या गलती। उनकी बात को सुनकर मुझे नहीं रहा गया। उत्सुकता वश मैने पूछ ही दिया। क्या हो गया काका। उन्होंने आंखे गुरेरकर कहा कि देख नहीं रहे हो, यूपी सरकार के मंत्री आपस में भिड़ गये हैं। ये प्रदेश का विकास क्या करेंगे, ये तो खुद लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री रोज-रोज तुगलकी फरमान जारी कर रहे हैं जो बाद में वापस लेना पड़ रहा है। पहले शाम को बिजली बंद रखने का फरमान आया, अगले ही दिन वापस। फिर एक बार तुगलकी फरमान, विधायक निधि से गाड़ी खरीदेंगे विधायक। दूसरे ही दिन फरमान को वापस लेना पड़ा। सरकार की जमकर किरकिरी हुई। एक बार फिर अहम को लेकर सरकार के दो मंत्री आपस में भिड़ गए हैं। इससे हानि किसका हो रहा है। हमारा और समाज का। प्रदेश का हाल तो बेहाल हो गया है।
उनकी इन बातों में मुझे कोई भी मजा नहीं आया। मुझे राजनीति से क्या लेना देना। मैं तो यह जानना चाहता था कि उछल कुद में कमी का क्या मतलब है। मैने साहस करके पूछ ही दिया। तब काका ने कहना शुरू किया-
एक  बाद जंगल के जानवरों ने राजा से परेशान होकर फिर से राजा के चुनाव कराने का निर्णय लिया। जंगल के सभी जानवर इकट्ठा होकर राजा के चुनाव के लिए चर्चा करने लगे। पहले के राजा शेर से परेशान होकर ज्यादातर जानवरों ने बंदर को अपना राजा चुन लिया। सभी ने सर्वसम्मति से बंदर को राजा बना दिया। उसके बाद सभा स्थगित कर दी गई।
बहुत दिनों तक जंगल में सब ठीक-ठाक चलता रहा। एक दिन शेर ने एक लोमड़ी के बच्चे को उठाकर लेकर चला गया। इससे परेशान होकर लोमड़ी जंगल के राजा के पास पहुंची और गुहार लगाते हुए बोली कि, मेरे बच्चे को बचा लो। नहीं तो शेर खा जाएगा। उसकी बातों को सुनकर राजा बना बंदर तुरंत उसके साथ चल दिया। शेर के गुफा के पास जाकर लोमड़ी छुप गई और बंदर पेड़ पर चढ़कर उछल कूद करने लगा। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि गुफा में जाकर शेर से लोमड़ी के बच्चे को छुड़ा लाए। काफी देर तक वह उछल कूद करता रहा। बंदर हरकतों को देखकर जब लोमड़ी को नहीं रहा गया तो उसने बंदर के पास आकर बोली, यह क्या कर रहे हैं। मेरे बच्चे को क्यों नहीं ला रहे हैं। तब बंदर बोला, तुम्हारा बच्चा नहीं छुट पा रहा है तो क्या हुआ, मेरे उछल कूद में तो कोई कमी नहीं है।
वहीं हाल इस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति का है। मुख्यमंत्री उछल कूद तो कर रहे हैं। उनका क्या दोष है। जो होगा उससे उनपर क्या फर्क पड़ेगा, भोगना तो समाज को ही है। 

महाप्रलय के स्वागत की तैयारी !

आज साल का अंतिम दिन। लोग इस साल की विदाई और आने वाले नव वर्ष की तैयारी में व्यस्त हैं। हम उस अनिश्चितता और भयावहता के स्वागत के लिए खड़े हैं, जिसके बारे में हमें ठीक से जानकारी तक नहीं है। आज के समय में हमारे वैज्ञानिकों ने भविष्य की संभावनाओं के बारे में काफी कुछ जानकारी जुटा लिया है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि आने वाला वर्ष हमारे वजूद के लिए काफी खतरनाक है। उनका तो यहां तक दावा है कि यह वर्ष मानव जीवन के लिए अंतिम वर्ष है। महाप्रलय की घोषणा काफी पहले ही कर दी गई है। पर यह क्या विडंबना है कि महाप्रलय के स्वागत के लिए इतने उतावले हो रहे हैं।

क्यों उजाड़ रहे हो मेरी हंसती-खेलती बगिया

आज रास्ते में भ्रष्टाचार मिल गया ............ लगा गरियाने देखते ही ......... बोला की हंसती -खेलती बगिया उजाड़ रहे हो ,अच्छी बात नहीं है .... मेरी खाती- कमाती जिन्दगी में आग नहीं लगने वाली ...मै इतनी जल्दी मरने वाला भी नहीं ..... हार नहीं मानुगा ..मेरे चाहने वाले सरकार के अन्दर भी और बाहर भी ..तुम्हारे जुलूस में भी और अनशन में भी ढेर सारे निकल आयेगे ... बोला-- मै जनता हू की तुम मुझसे नफरत करते हो ..मेरी तरक्की से तुम्हे जलन होती है ...बेवकूफ अपने अन्दर झांक .देख मै अन्दर ही बैठा हू ........अबे जब तेरी गरज होती है मेरे रास्ते ही चलते हो ....और आज तुम मेरे प्रशस्त पथ पर अवरोध डालने निकले हो .. मुझे मिटाने निकले हो ..पहले पैदा किया और पाल कर सेहतमंद बना दिया ...अब जब मेरी आदत पड़ चुकी है मेरी घेराबंदी कर रहे हो ... मै तुम्हे चुनौती देता हू ... तुम मुझे गाड़ने के लिए कितना भी बड़ा बिल बनवा लो ... मैंने व्यवस्था की जमीन में जो बिल बना रखे है ...तुम उसकी गहराई में सात जन्मो तक नहीं पहुच पाओगे .. मेरे बनाये बिल में प्रवेश करोगे तो वहा सुरंगों में भी सुरंगे है तुम भटक जाओगे तुम्हारी मशाले बुझ जायेगी ..लेकर चलते हो कैंडिल ..जायो अनशन करों भूखे मरो ...मुझे खाना है लगातार खा खा कर मुस्टंडा होकर एक दिन सबको खा जाउगा .................

पहले फांसी पर लटकाओ, सब ठीक हो जाएगा

दिल्ली विस्फोट में शामिल आतंकियों को पकडऩे के लिए हमारे देश की खुफियां एजेंसियां एड़ी चोटी एक किए हुए हैं। लेकिन इससे क्या होने वाला है। अगर आतंकी पकड़ भी लिए जाते हैं तो क्या हो जाएगा। हमारे लिए एक और सिरदर्द। पहले के आतंकियों को पकड़कर तो हम अपने पैर में कुल्हाड़ी मार ही चुके हैं। मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट में शामिल कसाब को लेकर तो हमारे देश के नेताओं को पसीना आ ही रहा है। उस आतंकी की रक्षा में हमारे देश की सबसे पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को लगाया गया है। उसको खाने में क्या चीज देनी है, उसके लिए बकायदा बोर्ड गठित है। उसको कब किस चीज की जरूरत है, इसके लिए एक पूरा सेल काम करता है। इसी को देखते हुए हमारे आकाओं ने संसद पर हमला करने वाले हेडली को अपने देश में लाने की जोखिम ही नहीं उठाया। उसे अमेरिका में ही रहने दिया। एक तरह से ठीक ही किया। अगर वह भी आ जाता तो हमारे सुरक्षा एजेंसियों के एक और सिरदर्द हो जाता। विकिलिक्स के इस खुलासे के बाद कि हमारे देश के नेताओं ने हेडली को भारत लाने का प्रयत्न ही नहीं किया, नेताओं पर क्या फर्क पडऩे वाला है।
हमारे देश के प्रिय नेताओं हम यही चाहते है कि केवल जंाच करने और पकड़ लेने से कुछ नहीं होने वाला। पहले पकड़े हुए आतंकियों को फंसी पर तो लटकाओं, देखो अपने आप सब ठीक हो जाएगा।

तो क्या फिर अपने अभियान में सफल होगी 'गांधी टोपी

अन्ना हजारे के समर्थन में पूरे देश से हजारों के बाद अब लाखों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा है। इन सभी को एक सूत्र में बांधने का काम रही है गांधी टोपी। गांधी टोपी पहनने का मतलब है, अन्ना हजारे का समर्थन करना।
क्या आप जानते हैं गांधी टोपी की शुरुआत कब हुई थी। १९१९ में जब महात्मा गांधी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे। उस समय उनके सिर पर हमेशा पांच गज कपड़े की पगड़ी हुआ करती थी। उसी दौरान जब वे भारत भ्रमण पर निकले तो देखा कि देश के कई हिस्सों में गरीबी का आलम यह है कि लोगों के पास तन ढकने के लिए कपड़े तक नहीं है। खाने के लिए भोजन नहीं है। उन्होंने यह तय किया कि कपड़े का बचत किया जाए। उन्होंने उसी समय पगड़ी को त्याग कर एक कम कपड़ोंं में तैयार टोपी से अपना सिर ढकना शुरू किया। यही वह टोपी है जिसे महात्मा गांधी जी ने १९१९ में अपने सिर पर धारण किया था।
उनके टोपी पहनने का परिणाम यह हुआ कि उस समय जो लोग भी उनके समर्थन में आए, वही खादी की टोपी पहनते गए। अंग्रेजों को यह टोपी काफी खटकने लगी। टोपी पहनने का मतलब ही होता था कि आजादी की लड़ाई में हम शरीक है। गांधी टोपी ने अंगेजों की नाक में दम कर दिया और आजादी की लड़ाई में इस टोपी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज जो आजादी हमें मिली है, उसमें गांधी टोपी का खास योगदान रहा है। इसी टोपी ने हमें अंगे्रजों से आजादी दिलाई थी। इसी का परिणाम है कि हमारे देश में हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार है।
लेकिन १६ अगस्त २०११ से अब यही गांधी टोपी अपने मायने को बदल चुकी है। अब यही गांधी टोपी सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि सरकार को अपनी बात मनवाने के लिए अड़ गई है। तो क्या इस बार भी गांधी टोपी अपने अभियान में सफल होगी। जिस टोपी को पहनकर लोगों ने आजादी की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों जैसे दमनकारियों को भारत छोड़ कर भागने पर विवश कर दिया। आज उसी टोपी को पहनकर हम भारतीय अपने ही द्वारा चुनी गई सरकार को सबक सिखाने को आतुर है। अब देखना यह है कि क्या यह गांधी टोपी फिर अपने अभियान में सफल होगी। या फिर हमारे द्वारा ही चुनी गई सरकार अंगे्रजों से भी अधिक दमनकारी हो जाएगी। यह तो आने वाला कल ही बताएगा।

दलगजन काका जइहे जेल

दलगजन काका जब से टीवी पर अन्ना हजारे के भाषण सुनले बहुते परेशान हो गइले। अन्ना हजारे क बात सुनी के कि अब आजादी क दूसरी लड़ाई शुरू हो गइल बा। उन कर मन जल्दी से जेल जाए खातिर बड़ा उतावला हो गइल बा। एह बारी उ आइल मौका हाथ से गवावल नइखन चाहत। बात बहुत पुरान बा।
दलगजन काका आ नाथू काका दुई भाई हवन जा। आज के समय में नाथू काका के बुढवती बड़ी आराम से कटत बा। बगल में दलगजन काका के सूर्ती महंग हो गइल बा। बात अइसन बा कि जब आजादी के लड़ाई लागल रहे, वही समय अंग्रेजन के सैनिक उ गांव में आ धमकलन। लोगन के धर पकड़ शुरू हो गइल। लोग गांव छोड़ी के भागे लगलन। इ दुनो भाई भी घर से निकल के भागे लगलन। एही बीच में नाथू काका के पुलिस पकड़ लिहलस। नाथू काका जेल पहुंच गइलन। दलगजन काका सिर पर पैर रखिके भाग गइलन। आज उहे बात सोची के दलगजन काका के माथा सुलुग जात बा। नाथू काका के आज सरकार के ओर से सम्मानित कइला के साथ ही महिनवारी भी मिलत बा। लोग उनके स्वतंत्रता सेनानी कहत बा। उनके मिले खातिर बड़े-बड़े नेता लोग भी गांव में आवत रहेला। अब जब से टीवी पर दलगजन काका सुन ले कि आजादी क दूसरी लड़ाई शुरू हो गइल बा। जेल जाये खातिर उ धोती कुर्ता लेइके उ तैयार बाडऩ।